9.10.12


कभी अन्य टीमें वेस्टइंडीज के आसपास भी नहीं फटकती थी। एक दौर था जब क्लाइव लॉयड, विव रिचर्ड, डेसमन हेंस, गार्डन ग्रीनीज विश्व के गेंदबाजों के लिए सिरदर्द बने। वहीं मालकॉल्म मार्शल और माइकल होल्डिंग बल्लेबाजों के लिए आतंक का पर्याय। बाद में इनकी परंपरा को कार्ल हूपर, ब्रायन लारा और कर्टनी वाल्स से बखूबी निभाया पर टीम में 70-80 के दशक वाला पराक्रम नहीं दिख रहा था। धीरे-धीरे स्थिति और बिगड़ती गई और आंतरिक कलह से टीम का बंटाधार हो गया। कभी क्रिकेट का बादशाह रहे वेस्टइंडीज की हालत प्यादे के जैसी हो गई। देशवासियों ने टीम से उम्मीदें बांधना ही छोड़ दिया। ऐसे मुश्किल हालात में मिली यह जीत कैरेबियाई क्रिकेट के खोए रुतबे को फिर से हासिल करने की दिशा में महती भूमिका निभाएगी।
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मोहम्मद शकील
वेस्टइंडीज के जश्न मनाने के तरीके को देख कर ही पता चल रहा था कि उपलब्धि कितनी बड़ी है। उपलब्धि वास्तव में बड़ी थी। वेस्टइंडीज क्रिकेट की एक पूरी पीढ़ी ने इस पल के लिए इंतजार किया। आखिरी बार वेस्टइंडीज ने 1979 में क्लाइव लायड के नेतृत्व में एकदिवसीय विश्व कप जीता था। संयोग देखिए, तब वर्तमान टीम को कोई खिलाड़ी पैदा भी नहीं हुआ था। वेस्टइंडीज 1983 में आखिरी बार विश्व कप के फाइनल में पहुंची थी। इसके बाद से 7 एकदिवसीय विश्व कप और 3 ट्वेंटी-20 विश्व कप में वेस्टइंडीज खिताबी से कोसों दूर रहा। पर इस बार टीम ने डेरेन सैमी की प्रेरणादाई अगुवाई में खिताब जीतकर खुद को महान कप्तान क्लाइव लायड की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया।
टीम के कप्तान डैरेन सामी को विंडीज टीम की कमान उस समय मिली थी जब करार के चलते सभी सीनियर खिलाड़ियों को टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। वेस्टइंडीज में उस वक्त ज्यादातर खिलाड़ी नए आए थे और जब डेरेन सैमी को इसकी कप्तानी दी गई तो वह इंडीज के बी-टीम के कप्तान कहलाए। इस बी- टीम का सफर बहुत ही मुशिकल था। बांग्लादेश ने वेस्टइंडीज में आकर उसको वनडे में 3-0 से और टेस्ट में 2-0 से मात दी। इसके बाद भी बोर्ड और खिलाड़ियों का मनमुटाव लंबे समय तक चला। चैंपियंस ट्रॉफी में भी वेस्टइंडीज का यह कप्तान अपनी दोयम दर्जे की टीम के साथ उतरे थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे टीम के खिलाड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का अनुभव होता गया। रवि रामपाल, कीरोन पोलार्ड, केमर रोच, सुनील नरेन, डेरेन ब्रेवो अपनी पहचान बनाने लगे। वहीं बोर्ड ने भी कुछ सीनियर खिलाड़ियों को टीम में जगह देने का मन बना लिया। किसने सोचा था कि बी टीम का कप्तान कहलाए जाने वाले डेरेन सैमी एक दिन वेस्टइंडीज को उनका खोया गौरव वापस दिला देगा।
विश्व कप में हिस्सा लेने श्रीलंका पहुंची वेस्टइंडीज टीम को छुपा रुस्तम तो माना गया, पर यह टीम खिताब उड़ा ले जाएगी, इसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। टीम की सफलता में कप्तान सैमी का महत्वपूर्ण योगादान रहा। टीम को एक सूत्र में बांधने का काम उन्होंने बखूबी किया। विश्व कप में उनका रिकार्ड भले ही ज्यादा प्रभावी न रहा हो पर टूर्नामेंट में उन्होंने अहम मौकों पर विकेट निकाले और कुछ बेशकीमती रन भी बनाए। फाइनल में उन्होंने एंजोलो मैथ्यूज का विकेट लिया, जिसके बाद से श्रीलंका की पारी बुरी तरह ढह गई। साथ ही सैमी द्वारा बनाए गए 15 गेंद पर 26 रन ने अंत में हार-जीत का अंतर पैदा किया। रोचक बात यह है कि 1992 के बाद यह पहला मौका है कि किसी तेज गेंदबाज कप्तान ने विश्व कप जीता हो। अगर डेरेन सैमी को वेस्टइंडीज क्रिकेट का मसीहा कहा जाए तो गलत नहीं होगा। कैरिबियाई क्रि केट की कायापलट करने वाले सैमी से आने वाले दिनों में उम्मीदें और भी बढ़ गईं है।
वेस्टइंडीज ने यह विश्व कप ऐसे समय में जीता है जब क्रिकेट का गढ़ रहे वेस्टइंडीज में ही क्रिकेट दम तोड़ रही थी। एक के बाद एक हार से क्रिकेट की लोकप्रियता खटाई में पड़ रही थी। समर्थकों ने भी कैरेबियाई क्रिकेट को चुका हुआ मान लिया और दूसरे खेलों की तरफ आकर्षित होने लगे। लंदन ओलंपिक में धावकों के शानदार प्रदर्शन ने क्रिकेट की लोकप्रियता पर करारे प्रहार किए। आश्चर्य की बात तो यह है कि वहां बास्केटबॉल लोकप्रियता के मामले में क्रिकेट से आगे निकल गया। ऐसे में विश्व कप की यह जीत परिस्थितियों को काफी हद तक बदल देगी। फिर से लोग क्रिकेट पर भरोसा करेंगे। लगभग मृतप्राय हो चुकी कैरेबियाई क्रिकेट एक बार फिर कुलांचे भरेगा। सैमी ने वेस्टइंडीज क्रिकेट को एक नई जिंदगी दी है। जरा सोचिए वेस्टइंडीज टीम को विश्व चैंपियन बनते देख क्लाइव लॉयड को कितना सुकून मिल रहा होगा।

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