11.9.12

टी-20 विश्व कप के चार ग्रुप में से प्रत्येक ग्रुप में एक कमजोर कड़ी है। ग्रुप ‘ए’ में भारत के साथ अफगानिस्तान है, तो ग्रुप ‘बी’ में आयरलैंड। वहीं ग्रुप सी और डी में क्रमश: जिम्बाब्वे और बांग्लादेश की टीम है (इसे कमजोर समझना बेमानी होगी)।  इतना तो तय है कि अफगानिस्तान, आयरलैंड और जिम्बाब्वे के लिए कप तक पहुंचना लगभग नामुमकिन है। मैं बंग्लादेश को इस श्रेणी में नहीं रखना चाहता, क्योंकि एशिया कप के फाइनल में पहुंचकर और फाइनल करीब-करीब जीतकर वह मुख्य धारा की टीम बन गई है। तो फिर आयरलैंड, अफगानिस्तान और जिम्बाब्वे का मकसद क्या होगा? जाहिर है, बड़ी टीमों को चौंकाना। उलटफेर करना। टी-20 विश्व कप के इतिहास में उलटफेर होते रहे हैं। 2007 में हुए पहले टी-20 विश्व कप में बांग्लादेश (तब अमूमन कमजोर टीम हुआ करती थी) ने वेस्टइंडीज को 6 विकेट से हराकर टूर्नामेंट से ही बाहर कर दिया था। यह तो फिर भी स्वीकार्य था। लेकिन ग्रुप बी के एक मैच ने सबका ध्यान खींचा। जिम्बाब्वे जैसी कमजोर टीम ने कंगारूओं को धर दबोचा। वो तो भला हो कि जिम्बाब्वे का नेट रन रेट थोड़ा कम पड़ गया, अन्यथा आस्ट्रेलिया का पत्ता साफ हो जाता। टी-20 विश्व कप के दूसरे संस्करण में भी उलटफेर हुए। आयरलैंड ने बांग्लादेश को न सिर्फ हराया बल्कि उसे प्रतियोगिता से भी बाहर कर दिया। पर इस संस्करण का असली उलटफेर अभी बाकी था। हॉलैंड ने अपने चिर प्रतिद्वंद्वी इंग्लैंड को 4 विकेट से हराकर सनसनी मचा दी। हॉलांकि बेहतर रन रेट से इंग्लैंड नॉकआउट तक पहुंचने में कामयाब रहा। हॉलैंड की टीम इस बार विश्व कप के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई।
सिर्फ टी-20 में ही नहीं, एकदिवसीय में भी ऐसी टीमें उलटफेर करने में माहिर रहीं है। 2007 विश्व कप में बांग्लादेश ने भारत को हरा कर बाहर कर दिया था। यही हश्र आयरलैंड के हाथों हार कर पाकिस्तान का हुआ। 2011 विश्व कप में भी आयरलैंड ने इंग्लैंड को हराया था। यह जीत इस लिए बड़ी थी क्योंकि आयरलैंड ने 329 रन का लक्ष्य हासिल किया था। उलटफेर के इस सिलसिले का इस विश्वकप में भी जारी रहने की संभावना है। क्योंकि कमजोर टीमों का मूल मंतव्य बड़े टीमों का शिकार कर उनका समीकरण बिगाड़ने का होता है।

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