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16.12.10
7.12.10
4:09 pm
शकील समर
मैं खुद ही मुलाक़ात को चल देता हूँ
मायूसी जब चलके दो कदम नहीं आती
तेरी हर अदा मेरी एहसास में बसी है
याद तेरी बेसबब नहीं आती.........
समंदर आज फिर से खौफज़दा है
चेतावनी दी है किसी ने सुनामी की
वही होगा जो पहले हो चुका है
अंजाम जैसे तेरी-मेरी कहानी की
बहुत करीब थे अपनी मंजिल के हम
ज़रा सा आगे बढ़ कर हाथ बढ़ाना था
में तेरा हूँ, सिर्फ तेरा हूँ
ये बात तुम्हें ज़माने को बताना था
काश के तुझमें कोई झिझक नहीं आती
याद तेरी बेसबब नहीं आती.......
शहर से दूर पहाड़ों के दामन में
मोहब्बत का अपना भी एक घर था
हर एक कोणा, दरो-दीवार और फिजा
सब तेरी खुशबू से तर था.
बड़ी दिनों से तेरी महक नहीं आती
याद तेरी बेसबब नहीं आती.....
कभी जो तू निकल आती थी सावन में
घटा तुझको देख कर बरसती थी.
गुज़र होता जो तेरा बाग़ से तो
तुझे छूने को हरेक डाली लचकती थी.
इन डालियों में अब वो लचक नहीं आती.
तेरी याद बेसबब नहीं आती.....
मायूसी जब चलके दो कदम नहीं आती
तेरी हर अदा मेरी एहसास में बसी है
याद तेरी बेसबब नहीं आती.........
समंदर आज फिर से खौफज़दा है
चेतावनी दी है किसी ने सुनामी की
वही होगा जो पहले हो चुका है
अंजाम जैसे तेरी-मेरी कहानी की
इन बातों से कोई दहशत नहीं आती
याद तेरी बेसबब नहीं आती.......
बहुत करीब थे अपनी मंजिल के हम
ज़रा सा आगे बढ़ कर हाथ बढ़ाना था
में तेरा हूँ, सिर्फ तेरा हूँ
ये बात तुम्हें ज़माने को बताना था
काश के तुझमें कोई झिझक नहीं आती
याद तेरी बेसबब नहीं आती.......
शहर से दूर पहाड़ों के दामन में
मोहब्बत का अपना भी एक घर था
हर एक कोणा, दरो-दीवार और फिजा
सब तेरी खुशबू से तर था.
बड़ी दिनों से तेरी महक नहीं आती
याद तेरी बेसबब नहीं आती.....
कभी जो तू निकल आती थी सावन में
घटा तुझको देख कर बरसती थी.
गुज़र होता जो तेरा बाग़ से तो
तुझे छूने को हरेक डाली लचकती थी.
इन डालियों में अब वो लचक नहीं आती.
तेरी याद बेसबब नहीं आती.....
5.12.10
3:05 pm
शकील समर
शकील "जमशेदपुरी"
एक बस्ती थी, जहाँ चूहों का दर्जनों परिवार हसी-खुशी अपनी जिंदगी बसर कर रहा था. दुनिया के भय-आतंक और ईर्ष्या-द्वेष से दूर वो स्वतंत्र हो कर विचरण करते थे। लेकिन उनकी खुशियों को एक दिन किसी की नजर लग गई। चूहे यह देख कर काफी भयभीत हो गए कि एक बिल्ली उसके गांव में घुस आई है। पहले तो चूहों ने सोचा कि शायद ये बिल्ली इस गाँव से होकर गुजर रही है. उधर बिल्ली ने जैसे ही गाँव में कदम रखा, उसे आभास हो गया कि यह चूहों की बस्ती है. उसने इस गाँव में डेरा डाल दिया. फिर तो चूहों का बुरा वक़्त शुरू हो गया. बिल्ली घात लगा कर चूहों का शिकार करने लगी. चूहों का अपने घरों से निकलना भी मुश्किल हो गया. खाने कि तलाश में अब वो बिल से बहार भी नहीं आ सकते थे. स्थिति बद से बदतर होती जा रही थी. चूहों को जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान निकालना था. अन्यथा भूख से मरने कि नौबत आ सकती थी. इसी के तहत चूहों के मुखिया ने एक आपात बैठक बुलाई. बैठक में इस बात पर विचार-विमर्श हो रहा था कि बिल्ली से कैसे निपटा जाए? तभी एक चूहे ने कहा- "क्यूं न हम सभी मिल कर बिल्ली पर हमला कर दें." लेकिन से आसान नहीं था. बिल्ली काफी चालाक थी और फुर्तीली भी. साथ ही इसमें जान का जोखिम भी था. तभी पिछली पंक्ति से एक युवा चूहे ने कहा- "बगल के गाँव में मेरा एक कुत्ता दोस्त रहता है.वो हमारी मदद कर सकता है. अगर उसे यहाँ बुला लिया जाए तो वो बिल्ली को खदेड़ देगा." यह राय सभी को पसंद आई. चूहे के मुखिया ने आदेश दिया कि कल ही वो उस कुत्ते से जाकर इस संदर्भ में बात करे.
अगली सुबह वो चूहा बिल्ली कि नज़रों से बचते बचाते बगल के गाँव के लिए प्रस्थान किया. उस चूहे ने कुत्ते के सामने अपना प्रस्ताव रखा. कुत्ते ने साफ़ इनकार कर दिया, ये कह कर कि २४ दिसम्बर से उनके फर्स्ट सेमेस्टर कि परीक्षा है और वो अभी भौकने कि प्रक्टिस कर रहा है. चूहे के काफी निवेदन करने के बाद आखिरकार कुत्ता तैयार हो गया.
जैसे ही वो कुत्ता चूहों के गाँव में आया, बिल्ली अपने घर में दुबक गयी. कुत्ते ने बिल्ली के घर के सामने डेरा दाल दिया. अब बाज़ी पलट चुकी थी. बिल्ली का घर से निकलना मुश्किल हो गया और चूहों के पुराने दिन वापस लौट गए. कुत्ते के लिए नाश्ते और खाने का इंतज़ाम चूहे ही करते थे. कुत्ता दिन-रात बिल्ली के घर के बाहर बैठा रहता था. ऐसे में बिल्ली के लिए मुसीबत बढ़ गयी. कुछ दिन तक तो बिल्ली कुत्ते के जाने का इंतज़ार करती रही, लेकिन अब भूख से उनकी हालत पतली होने लगी थी. वो अपने घर से बाहर भी नहीं निकल सकती थी, क्यूंकि बाहर कुत्ता २४ घंटे मुस्तैद रहता था.
तभी बिल्ली के शातिर दिमाग में एक योजना आई. एक कुतिया से उनका अच्छा-ख़ासा परिचय था. बिल्ली ने सोचा कि वो उस कुतिया से बात करेगी और कहेगी कि वह इस कुत्ते को अपने प्यार में फंसा कर यहाँ से दूर ले जाये. बिल्ली ने तत्काल उस कुतिया से संपर्क किया. कुतिया एक झटके में तैयार हो गयी. अगले दिन वो कुतिया उस गाँव में आई और कुत्ते पर डोरे डालने लगी.कुत्ते को पता था कि बिल्ली काफी शातिर दिमाग है. इसलिए कुतिया के प्यार भरे इशारों में उसे साजिश कि बू आ रही थी. उस कुतिया ने अपने स्तर से काफी प्रयास किया, पर कुत्ते के ईमान को डगमगाने में नाकाम रही. बिल्ली कि ये योजना पूरी तरह नाकाम हो गयी. भूख प्यास के मारे उसका और भी बुरा हाल हो गया था. अगर जल्द ही वह कोई वैकल्पिक उपाय नहीं करती तो भूख से वैसे भी मारी जाती. आखिरकार बिल्ली ने तुरुप का इक्का निकाला और कुत्ते से निपटने का पूरा बंदोबस्त कर लिया.
अगली सुबह से वह स्वयं कुत्ते पर प्यार के डोरे डालने लगी. पहले तो कुत्ते ने अपने ऊपर संयम रखा, लेकिन बिल्ली को दूसरी बिरादरी कि लड़की होने का फायदा मिला. एक रात बिल्ली ने खिड़की को खुला छोड़ दिया और निवस्त्र हो गयी. कुत्ते का धैर्य ज़वाब दे गया. उसका ईमान डगमगाने लगा. उस रात दोनों एक-दूसरे के आगोश में आ गये. बिल्ली के पास ये सुनहरा मौका था कुत्ते से छुटकारा पाने का. मौका पाते ही बिल्ली ने चूहे के गले पर वार किया और अगले ही क्षण कुत्ता ढेर हो गया.
चूहे के बुरे दिन फिर से वापस आ गए. बिल्ली का तांडव फिर से अपने चरम पर पहुँच गया. चूहों के पास अब कोई विकल्प भी नहीं था, सिवाय बिल्ली के ज़ुल्म को सहने के और खौफ के साए में जीने के अलावा. चूहों को मार कर खाने का बिल्ली का सिलसिला अनवरत चलता रहा, और फिर एक दिन........
एक दिन चूहे ये देख कर हैरान हो गए कि बिल्ली उसका गाँव छोड़ कर जा रही है. वास्तव में महीनों चूहे का मांस खाने से बिल्ली उब गयी थी. इसलिए बिल्ली यहाँ से दूर जा रही थी. लेकिन बिल्ली ने जाते जाते भी कोई मौका नहीं छोड़ा. वह चूहों को संबोधित करते हुए बोली- "भाइयो! मैंने आप पर बहुत ज़ुल्म किया है. इसलिए अपने पापों का प्रश्चित करने तीर्थ यात्रा पर जा रही हूँ. हो सके तो मुझे माफ़ कर देना."
प्यारे साथियो! कहानियों के पठन-पाठन की भारतीय परम्परा बेहद पुरानी है. हर कहानी में कुछ न कुछ संदेश छुपा होता है. खासकर जब कोई संदेशपरक कहानी हो तो उसका अर्थ और भी गूढ़ हो जाता है. तो इस कहानी से आपको क्या सन्देश मिला, हमें ज़रूर बताईयेगा, अपने बहुमूल्य टिप्पणियों के जरिये.
4.12.10
8:45 pm
शकील समर
अपने वजूद को दर्द से सजाए रखते हैं
दिल जलाते हैं और शम्मा बुझाए रखते हैं
फिर भी तेरी तस्वीर दिल में समाए रखते हैं
दिल जलाते हैं और शम्मा बुझाए रखते हैं
जागते अरमां को अब सुलाए रखते हैं
दिल जलाते हैं और शम्मा बुझाए रखते हैं
दिल जलाते हैं और शम्मा बुझाए रखते हैं
ये मेरे रात भर रोने की गवाही है
पत्तियों पर शबनम का जो पहरा है
इतनी सी बात कब समझेंगे वो
जख्म दिल का तेरे प्यार से गहरा है
दिल जलाते हैं और शम्मा बुझाए रखते हैं
रात भर मैंने जो आसमां की निगहबानी की
चांद और तेरे हुस्न की आजमाइश में
और तुम जो जागती रही रात भर
खलल पड़ता रहा सितारों की नुमाइश में
अब तेरी तस्वीर को पलकों में छुपाए रखते हैं
दिल जलाते हैं और शम्मा बुझाए रखते हैंहम समझते थे वो समझती है खामोशी की जुबां
अब उनके समझ की इंतेहा हो गई
चुप रहने को बेहतर समझते रहे "शकील"
तेरी यही खामोशी एक दास्तां हो गई
दिल जलाते हैं और शम्मा बुझाए रखते हैं
3.12.10
6:24 pm
शकील समर
शकील "जमशेदपुरी"
तस्वीर गूगल के सौजन्य से! |
छत पे तुम जो आ गई तो लोगों पे सितम हुआ
अमावस की रात में भी चांद का भ्रम हुआ
जिंदगी लगी थिरकने दूर रंजो-गम हुआ
मुझपे तेरे प्यार का जब से यह करम हुआ
याद तेरी आ गई और मुझसे यूं लिपट गई
गीत लिखने के लिए हाथ में कलम हुआ
लोग पूछते है मुझसे राज मेरे गीत का
क्या कहूं मैं उनसे कि बेवफा सनम हुआ
मिट सकेगी क्या कभी हीर-रांझे की दास्तां
"शकील" तेरे प्यार का किस्सा क्यों खत्म हुआ?
17.11.10
12:57 pm
शकील समर
शकील "जमशेदपुरी"
फोटो गूगल के सौजन्य से! |
फूल में खुशबू है तुझसे, महकता है तेरे खातिर
चिंगारी शोलों में भी है, भड़कता है तेरे खातिर
बेशर्मी चांद की देखो ये तकता है तुझे अब तो
बेशर्मी इस दिल की देखो, धड़कता है तेरे खातिर
चिंगारी शोलों में भी है, भड़कता है तेरे खातिर
बेशर्मी चांद की देखो ये तकता है तुझे अब तो
बेशर्मी इस दिल की देखो, धड़कता है तेरे खातिर
अंधेरा फिर घना छाया जुल्फ तूने जो लहराई
तेरा चेहरा जो देखे तो चांद लेता है अंगड़ाई
बहुत सुनते थे चर्चा फूल, कलियां और शबनम की
तेरा चेहरा जो देखे तो चांद लेता है अंगड़ाई
बहुत सुनते थे चर्चा फूल, कलियां और शबनम की
तुझे देखा तो जाना है कि सब तेरी है परछाई
पल्लू में चेहरा छुपाना भी तेरा यूं मुस्कूराना भी
गजब ढाता है यह मुझपर तेरा पलकें छुकाना भी
मुझे हर एक पन्ने में तेरा चेहरा झलकता है
पढूं कोई कहानी या पढूं कोई फसाना भी
गजब ढाता है यह मुझपर तेरा पलकें छुकाना भी
मुझे हर एक पन्ने में तेरा चेहरा झलकता है
पढूं कोई कहानी या पढूं कोई फसाना भी
प्यार शाजिस है गर तेरी तो इश्क है मेरा पेशा
दिखावा दिल मिलाने का भला यह खेल है कैसा!
दिखावा दिल मिलाने का भला यह खेल है कैसा!
निगाहों में बसाकर फिर निगाहों से गिरा देना
हुनर हमको भी आता है मगर करते नहीं वैसा
हुनर हमको भी आता है मगर करते नहीं वैसा
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