8.10.14

The feeling of being in love is so intense that one starts believing that it will last forever. Really love is mysterious and so is destiny.
With the same mystery of love and destiny we bring before you a story of passionate love. A story of destiny and desire as never told before.
Accident : a love story is an upcoming novel of Shakeel Samar, which holds the emotion in it to activate the lover in you.

29.6.14

एक तरही गजल -

हरेक सिम्त शजर के सिवा कुछ और नहीं
मेरी तलब है ख़िज़र के सिवा कुछ और नहीं

नजर की ज़द में लहर के सिवा कुछ और नहीं
मगर तलाश गुहर के सिवा कुछ और नहीं

हरेक रोज की उलझन है और दुश्वारी
हयात जैसे बहर के सिवा कुछ और नहीं

जला के बस्तियां संसद में चींखता है वो
हमें तो फिक्र-ए-बशर के सिवा कुछ और नहीं

हरा-भरा है मगर ये शजर कटेगा जरूर
सभी को शौक़-ए-समर के सिवा कुछ और नहीं

तुम्हारे पास 'पहुंच' भी है और 'पैसा' भी
हमारे पास हुनर के सिवा कुछ और नहीं

किया जो इश्क तो ये राज भी खुला हम पर
'हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं'

बुरा न मानो तो इक बात मैं कहूं तुमसे
तेरी ये बिंदी क़मर के सिवा कुछ और नहीं

तुम्हारी आंखें मुझे लग रहीं हैं मयखाने
ये जाम तेरी नजर के सिवा कुछ और नहीं

सही था फैसला तेरा कि मुझसे दूर हुए
'शकील' एक भंवर के सिवा कुछ और नहीं

-शकील समर

18.3.14

''भारतीय महिला हाकी के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि खिलाडिय़ों को इसमें अपना भविष्य नजर नहीं आता। ऐसे में वह इस खेल के प्रति आकर्षित हों भी तो कैसे। रेलवे महिला हाकी खिलाडिय़ों को नौकरी देता है, पर यह काफी नहीं है। जरूरी है कि हर राज्य की सरकार खिलाडिय़ों को अलग-अलग पोस्ट पर भर्ती करे, ताकि महिलाएं हाकी खेलने को लेकर प्रेरित हों।" यह कहना है भारतीय महिला हाकी टीम की पूर्व कप्तान और 'गोल्डन गर्ल' के नाम से मशहूर ममता खरब का। अपने समय की बेहतरीन फारवर्ड ममता इन दिन भोपाल में चल रही चौथी सीनियर राष्ट्रीय महिला हाकी चैंपियनशिप में बतौर चयनकर्ता आई हुई हैं। रविवार को ऐशबाग स्टेडियम में राजस्थान और दिल्ली के बीच खेले जा रहे मैच पर ममता अन्य चयनकर्ताओं के साथ मैच पर कड़ी नजर बनाए हुई थी। हाफ टाइम के दौरान उन्होंने दैनिक जागरण से खास बातचीत में कहा कि महिला हाकी धीरे-धीरे ऊपर उठ रही है। 2002 कामनवेल्थ गेम्स में गोल्डन गोल दागने वाली इस खिलाड़ी ने खिलाडिय़ों के भविष्य के बारे में चिंता जाहिर करते हुए कहा कि राज्य सरकार को खिलाडिय़ों को नौकरी देनी चाहिए। उन्होंने खुद का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें हरियाणा सरकार ने डीएसपी के पद पर भर्ती किया। अगर इस तरह की पहल हर राज्य में हो तो इससे महिला हाकी को काफी बढ़ावा मिलेगा। हाल ही में अनुशासनहीनता के कारण रेलवे के 16 खिलाडिय़ों को निलंबित किए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि खेल में अनुशासन तो होना ही चाहिए। हाकी इंडिया के इस कदम से खिलाडिय़ों को कड़ा संदेश जाएगा।

बी डीविजन से भी निकलेंगे खिलाड़ी
टूर्नामेंट के बाद आगामी चैंपियन चैलेंज और एशियन गेम्स के लिए टीम का चयन होना है। ममता ने कहा कि बी डीविजन के ज्यादातर मुकाबले भले ही एकतरफा हो रहे है पर इससे भी कई खिलाड़ी निकलेंगे। उन्होंने कहा कि मैच में गोल करने से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है कि खिलाड़ी का एप्रोच कैसा है। उन्होंने राजस्थान-दिल्ली के बीच चल रहे मैच का उदाहरण देते हुए कहा कि राजस्थान की सुनीता अच्छे पास दे रही थी। यह अलग बात है कि पूरा सपोर्ट न मिलने के कारण गोल नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि टीम भले ही बड़े अंतर से हारे, पर उसमें एक-दो ऐसे खिलाड़ी तो होते ही हैं जो अपने स्किल से प्रभावित करते हैं।

मेरा कभी किसी फारवर्ड से खुन्नस नहीं रहा
2007 की सुपर हिट फिल्म चक दे इंडिया में कोमल चौटाला के चरित्र को ममता खरब के माडल पर ही विकसित किया गया था। फिल्म में दिखाया गया है कि कोमल का अपने ही टीम की एक अन्य फारवर्ड खिलाड़ी से खुन्नस रहती है और वह उसे पास नहीं देती है। इस पर ममता मुस्कुराते हुए कहती है कि मेरा कभी साथी खिलाड़ी के साथ इस तरह का खुन्नस नहीं रहा। फिल्म में तो नाटकीयता परोसी गई है। जब मैं हाकी खेलती थी तो मेरी कोशिश मूव बनाने की और ज्यादा से ज्यादा पास देने की होती थी। ममता कहती है कि कोई खिलाड़ी इसलिए महान नहीं होता कि उन्होंने कितने गोल किए हैं, बल्कि इसलिए महान होता है कि उनकी पासिंग स्किल कैसी है।

15.3.14

अंतरराष्ट्रीय हाकी अंपायर निर्मला डागर।
भोपाल में चल रही चौथी हाकी इंडिया सीनियर महिला राष्ट्रीय चैंपियनशिप में महिला खिलाड़ी तो मैदान पर अपना जौहर दिखा ही रही है, साथ ही कुछ महिला अंपायर भी मैदान पर अपनी भूमिका निभा रही है। टूर्नामेंट डायरेक्टर शकील कुरैशी कहते हैं कि इस समय सीनियर पुरुष और जूनियर महिला के भी राष्ट्रीय चैंपियनशिप आयोजित किए जा रहे हैं। इसलिए अंपायर की कमी के कारण भोपाल में चल रहे टूर्नामेंट में पुरुषों के साथ-साथ महिला अंपायरों की भी सेवाएं ली जा रही हैं। उन्होंने कहा कि टूर्नामेंट में कुल 8 महिला अंपायर हैं, जिनमें से 2 अंपायर अंतरराष्ट्रीय स्तर की हैं। ऐसी ही एक महिला अंपायर हैं हरियाणा की निर्मला डागर। निर्माला कभी हरियाणा टीम में अपने समय की बेहतरीन मिडफील्डर हुआ करती थी। उनका बस एक ही सपना था- भारतीय टीम के लिए खेलना। पर उनका यह सपना साकार नहीं हो सका। आखिरकार उन्होंने अंपायर बनकर इस कमी को पूरा किया। निर्मला बताती है कि वह भारतीय टीम में जगह बनाने के बेहद करीब थी, पर शादी हो जाने के बाद उनके खेल करियर को गहरा झटका लगा। चेहरे पर अफसोस भरी मुस्कान लिए निर्मला कहती है, ''उस वक्त अगर मेरी शादी नहीं हुई होती तो मैं भारत के लिए जरूर खेलती। हालांकि शादी के बाद भी मैंने हॉकी खेलना जारी रखा और दिल्ली के लिए खेलने लगी। पति ने काफी सपोर्ट भी किया, पर मेरे खेल पर असर तो पड़ा ही।'' निर्मला ने इसके बाद अंपायर बनने की दिशा में प्रयास किया। 2006 से उन्होंने अंपायरिंग शुरू की। वर्ल्ड लीग और दो बार एशियन चैंपियंस ट्राफी में अंपायरिंग कर चुकी निर्मला कहती है कि आज मैं बतौर अंपायर भारत का प्रतिनिधित्व करती हूं, जो देश के लिए हाकी न खेल पाने के दर्द को कम कर देता है। निर्मला कहती है, ''मैं हाकी खेल कर देश का प्रतिनिधित्व करना चहती थी। जब यह सपना टूट गया तो मैंने अंपायर बनकर देश का प्रतिनिधित्व करने की ठानी और मैं इसमें सफल रही।''

14.3.14

पलकों से आसमां पर एक तस्वीर बना डाली
उस तस्वीर के नीचे एक नाम लिख दिया;
फीका है इसके सामने चाँद ये पैगाम लिख दिया

सितारों के ज़रिये चाँद को जब ये पता चला
एक रोज़ अकेले में वो मुझसे उलझ पड़ा
कहने लगा कि आखिर ये माजरा क्या है
उस नाम और चेहरे के पीछे का किस्सा क्या है.

मैं ने कहा- ऐ चाँद क्यूं मुझसे उलझ रहा है तूं
टूटा तेरा गुरूर तो मुझ पर बरस रहा है तूं.
वो तस्वीर मेरे महबूब की है, ये जान ले तूं
तेरी औकात नहीं उसके सामने, यह मान ले तूं.

ये सुन के चाँद ने गुस्से में ये कहा-
अकेला हूँ कायनात में, तुझे शायद नहीं पता.
लोग मुवाजना करते हैं मुझसे अपनी महबूब का
चेहरा दिखता है मुझ में हरेक को अपनी माशूक का.

मैंने कहा- ऐ चाँद चल तेरी बात मान लेता हूँ,
पर तेरे हुस्न का जायजा मैं हर शाम लेता हूँ
मुझे लगता है आइना तुने देखा नहीं कभी
एक दाग है तुझमें जो उस चेहरे मैं है नहीं

यह सुन के चाँद बोला ये मोहब्बत कि निशानी है
इसके ज़रिये मिझे नीचा न दिखाओ ये सरासर बेमानी है
जिस शाम लोगों को मेरी दीद नहीं होती
अगले रोज़ तो शहर में ईद नहीं होती

मैंने कहा ऐ चाँद, तू ग़लतफ़हमी का है शिकार
सच्चाई ये है कि तूं मुझसे गया है हार
एक रोज़ मेरा महबूब छत पर था और शाम ढल गयी
अगले दिन शहर में ईद कि तारीख बदल गयी.

ये आखरी बात ज़रा ध्यान से सुनना
हो सके तो फिर अपने दिल से पूछना

यह एक हकीक़त है कोई टीका टिप्पणी नहीं है
जिस चांदनी पे इतना गुरूर है तुझको,
वो रौशनी भी तो तेरी अपनी नहीं है
वो रौशनी भी तो तेरी अपनी नहीं है.....

13.3.14

सुकून दिल को न मिलता किसी बहाने से
बहुत उदास हो जाता हूं तेरे जाने से

नहा रहा है पसीने से फूल बागों में
चटक रही है कली उसके मुस्कुराने से

फिर एक बार इरादा किया है मिटने का
ये बात जा के कोई कह तो दे जमाने से

जवान बेटी की शादी की फिक्र है शायद
वो रात को भी न आता है कारखाने से

शहर में जुल्म हुआ किस तरह से दीपों पर
'इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से'

लिखोगी रोज मुझे खत ये तय हुआ था पर
खबर न आज भी आई है डाकखाने से

‘शकील’ और न रुसवा हो अब जमाने में
कि बाज आ भी जा अब तू फरेब खाने से
—शकील जमशेदपुरी

27.11.12

Arjun Ranatunga addressing a press conference here at Bhopal on Saturday.
मोहम्मद शकील, भोपाल
1996 में अपने प्रेरणादाई नेतृत्व से श्रीलंका को विश्व कप दिलाने वाले कप्तान और वर्तमान में सांसद अजरुन रणतुंगा ने आईपीएल को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि इससे क्रिकेटर नहीं कसाई निकल रहे हैं। मालूम हो कि शनिवार को रणतुंगा अपने सांची भ्रमण के दौरान भोपाल में आयोजित एक कार्यक्रम में शिकरत की।
कार्यक्रम से इतर उन्होंने कहा कि आईपीएल क्रिकेट नहीं बल्कि मनोरंजन मात्र रह गया है। यहां कलात्मकता का जरा भी ध्यान नहीं रखा जाता और खिलाड़ी आंख बंद कर बस बल्ला घुमाते रहते हैं। उन्हें तकनीक से कोई लेनादेना नहीं होता। आईपीएल उन लोगों के लिए है जो क्रिकेट की समझ नहीं रखते। जो क्रिकेट जैसे कलात्मक खेल को समझते हैं वह कभी भी इस छोटे संस्करण को पसंद नहीं करेंगे। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि आईपीएल जैसे टूर्नामेंट का नुकसान विश्व क्रिकेट को भी उठाना पड़ रहा है। खिलाड़ी अब अपने देश के बजाय आईपीएल में खेलना पसंद कर रहे हैं। आईपीएल के कारण अंतरराष्ट्रीय दौरे रद्द हो रहे हैं जो क्रिकेट के गौरवशाली इतिहास के लिए बेहद खतरनाक है। रणतुंगा यहीं नहीं रुके और उन्होंने आईसीसी पर निशाना साधते हुए कहा कि वह अमीर क्रिकेट बोर्ड के हाथों की कठपुतली बनकर रह गई। उन्होंने बीसीसीआई का नाम लिए बगैर कहा कि अमीर बोर्ड के आगे आईसीसी बेबस नजर आती है।

मैं भाग्यशाली हूं कि मेरी बीवी गुस्सैल नहीं है

एक सवाल के जवाब में रणतुंगा ने हंसते हुए कहा कि मैं खुद को भाग्यशाली समझता हूं कि मेरी बीवी गुस्सैल नहीं है। मेरी बीवी बेहद शांत प्रवृत्ति की है। उल्लेखनीय है कि सचिन तेंदुलकर ने एक कार्यक्रम में कहा था कि गुस्साई बीवी तूफानी गेंदबाज से भी ज्यादा खतरनाक होती है।

10.10.12


ढाक के तीन पात। फिर वही कहानी। सुपर-8 में पहुंचना बड़ी बात नहीं। वजह, हर ग्रुप में एक कमजोर टीम होती है। तारीफ तो तब है जब सेमीफाइनल में पहुंचें। भारतीय टीम ने सुपर-8 से बाहर होने की हैट्रिक पूरी की। बार-बार, हर बार वही कहानी। पहले हार कर बाहर हुए, इस बार जीत कर भी बाहर हो गए। जाहिर है, कहीं न कहीं, कुछ न कुछ कमी तो है। खिलाड़ी बदलो, कप्तान बदलो, युवाओं को ज्यादा मौका दो, चाहे कुछ भी करो। अब भारतीय क्रिकेटप्रेमी बदलाव चाहते हैं।

मोहम्मद शकील
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भारत को लक्ष्य मिला कि वह दक्षिण अफ्रीका को 121 से पहले रोक ले तो उन्हें समीफाइनल में जगह मिल जाएगी। भारत में क्रिकेट के चाहने वालों ने उम्मीद नहीं छोड़ी थी। उन्हें पूरा विश्वास था कि भारत दक्षिण अफ्रीका को 121 से पहले रोक लेगा। उनका यह विश्वास तब और भी पुख्ता हो गया जब पहले ही ओवर में हाशिम अमला पवेलियन लौट गए। नियमित अंतराल पर विकेट गिरते रहे और भारतीयों की उम्मीदें परवान चढ़ने लगीं। पर उस रात फॉफ डू प्लेसिस भारत के लिए विलेन बनकर सामने आए। 38 गेंदो पर 65 रन ठोक डाले। जब उनका विकेट मिला तब तक बहुत देर हो चुकी थी। रॉबिन पीटरसन ने जैसे ही एक रन लेकर स्कोर 122 किया, भारत में सन्नाटा पसर गया। कोहली और रोहित शर्मा आंसू नहीं रोक पाए। क्रिकेट इतिहास में यह दर्ज होगा कि भारत ने दक्षिण अफ्रीका को एक रन से हराया। पर एक ऐसी जीत जिन्होंने विजेता होने का भाव पैदा नहीं किया।
टी-20 विश्व कप में लगातार तीसरी बार भारत की दुर्गति हुई। 2011 विश्व कप जीतने के बाद भारत का प्रदर्शन निरंतर गिरता चला गया है। अब सवाल उठना तो लाजमी है। बोर्ड के सामने चुनौती भी है और अवसर भी कि वह भारतीय क्रिकेट के हित में कुछ कठोर निर्णय लें। संदीप पाटिल की अध्यक्षता वाली नई चयन समिति को तय करना होगा कि वे मौजूदा टी-20 टीम में आमूलचूक बदलाव चाहते हैं या कुछ सीनियर खिलाड़ियों को क्रमबद्ध तरीके से विदाई देना चाहेंगे।
फिटनेस और चयन
इसे आप क्या कहेंगे कि श्रीकांत की अगुवाई वाली चयन समिति पर लगातार सवाल उठे। विश्व कप भी इससे अछूता नहीं रहा। भारत के प्रदर्शन को इनसे भी जोड़कर देखा जा सकता है। कैंसर से उबर कर युवराज ने वापसी की। मीडिया में युवराज की वापसी को भावनात्मक रूप से ऐसे पेश किया गया मानों वह जीत और हार की दीवार हों। युवराज का प्रदर्शन भले ही खराब न रहा हो पर युवराज को अभी पूरी तरह ़फिट होने में समय लगेगा। युवराज की वापसी को भावनाओं से जोड़कर देखा गया और उन्हें विश्व कप टीम का अभिन्न अंग माना गया। सच्चाई तो यह है कि मैच भावनाओं से नहीं, फिटनेस और प्रदर्शन से जाता जाता है।  जहीर खान का भी हाल वैसा ही है। अपने चार ओवर फेंकने के बाद जहीर मैदान पर धीमे पड़ गए। सहवाग कितने ़फिट हैं और कितनी गंभीरता से बल्लेबाजी कर पाते हैं, इसकी भी समीक्षा होनी चाहिए। अगर गंभीर का खराब फार्म पिछले एक साल से जारी है तो क्या उन्हें कुछ समय बाहर बैठ कर घरेलू क्रिकेट नहीं खेलना चाहिए।  पीयूष चावला के बजाय किसी और युवा स्पिनर को टीम में जगह क्यों नहीं दी गई। क्यों आईपीएल में रनों का अंबार लगाने वाले अजिंक्य रैहाणो भारतीय टीम में नहीं दिखे। ऐसी क्या मजबूरी है कि कप्तान धोनी का झुकाव बालाजी के प्रति हो ही जाता है। क्या इंग्लैंड के बल्लेबाजों को धाराशाई करने वाले भज्जी को भी अश्विन के बराबर मौके नहीं मिलने चाहिए थे। आखिर रोहित शर्मा में ऐसी क्या खासियत है कि औसत प्रदर्शन (5 मैच, 82 रन) के बाद भी उन्हें अंतिम एकादस में शामिल किया गया। आखिर उनकी जगह मनोज तिवारी को क्यों नहीं आजमाया गया।

बदिकस्मती: किस्तम से नहीं जीती जाती वर्ल्ड कप
विश्व कप में भारत के अभियान का मूल्यांकन करने पर जेहन में सबसे पहले गूंजने वाला शब्द है बदकिस्मती। देखा जाए तो भारतीय टीम उतना भी बुरा नहीं खेली। टीम ने इंग्लैंड को हराया, पाकिस्तान को हराया और दक्षिण अफ्रीका को भी शिकस्त दी। कुल पांच मैचों में से 4 में जीत दर्ज की। फिर भी टीम सेमीफाइनल में नहीं पहुंच पाई। वहीं वेस्टइंडीज ने 5 मैचों में सिर्फ दो जीत दर्ज कर सेमीफाइनल में पहुंची। इन आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि किस्मत ने भारत का साथ नहीं दिया। लेकिन बदिकस्मती को भुलाकर थोड़ी दूरिदर्शता भी जरूरी है।  विश्व कप जैसे बड़े टूर्नामेंट किस्मत के सहारे नहीं जीता जाता। सबको पता था कि सुपर आठ में भारत ग्रुप ऑफ डेथ में है, जहां नेट रन रेट से लेकर एक-एक रन बाद में बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाएंगे। इसके बावजूद भारत ने गणित के तमाम पहलूओं पर विचार नहीं किया। जब पाकिस्तान के खिलाफ जीत पक्की हो गई थी तो टीम के उप-कप्तान विराट कोहली और युवराज को जल्दी जीत का लक्ष्य भेदना चाहिए था। पर दोनों ने ऐसी कोई कोशिश नहीं की। यानी कमियां सिर्फ खिलाड़ियों के स्तर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि रणनीति बनाने में भी भारत विफल रहा।
हार के बाद कमियों को निकालना सबसे आसान काम है। खेल की रिपोर्टिग करने से भी ज्यादा सरल। पर कमियां निकालना भी जरूरी है, ताकि आगे चलकर इसे सुधारा जा सके। इस समय भारतीय टीम में चैंपियन जैसी कोई बात नहीं रह गई है। समय की मांग यही कि बदलाव भरे कुछ कठोर फैसले लिए जाएं। हर टीम बदलाव के दौर से गुजरी है। आस्ट्रेलिया का उदाहरण सबसे ताजा है। रिकी पोंटिंग की अगुवाई में कंगारूओं ने क्रिकेट पर एकक्षत्र राज किया। आज आस्ट्रेलिया की टीम कितनी बदल चुकी है। इस विश्व कप में खेलने वाली आस्ट्रेलियाई टीम में न ब्रेट ली थे, न मिशेल जॉनसन और न ही माईकल क्लार्क। भारतीय क्रिकेट में यह बदलाव का सबसे सही समय है, ताकि आने वाली पीढ़ी को क्रिकेट की यह गौरवशाली विरासत सही सलामत सौंपी जा सके।

विश्व चैंपियन बनने के बाद से लगातार गिरी है शाख
भारतीय टीम ने 2011 में एकदिवसीय का विश्व कप जीता। पर इसके बाद से टीम लगातार रसातल की ओर जा रही है। इंग्लैंड दौरे पर टीम का पूरी तरह से सूपड़ा साफ हो गया। टेस्ट, वनडे और टी-20 के सभी मैच गंवाए। इसके बाद आस्ट्रेलिया दौरे पर भी टीम ने 4 टेस्ट गंवा दिए। वहीं आस्ट्रलिया में हुई त्रिकोणीय सीरीज में भारत फाइनल में पहुंचने में नाकाम रहा। एशिया कप में भारत बंग्लादेश से हार कर खिताब की दौड़ से बाहर हो गया। और अब एक बार फिर टी-20 विश्व कप के सेमीफाइनल में नहीं पहुंच पाए।  इस दौरान भारत सिर्फ वेस्टइंडीज और न्यूजीलैंड जैसे कमजोर टीम के विरुद्ध ही सफलता पाने में कामयाब रहा। अगर टीम का प्रदर्शन लगातार गिर रहा है तो इसकी कोई न कोई वजह अवश्य होगी। इन वजहों को ढूंढने और उसे दूर करने की चुनौती नए चनकर्ताओं के सामने रहेगी।

..तो पाकिस्तान के पास ऐसी क्या रणनीति है?
भारत और पाकिस्तान का क्रिकेट इतिहास समकालीन ही कहा जाएगा। पिछले कुछ वर्षो में पाकिस्तानी क्रिकेट काफी उथल-पुथल वाले दौर से गुजरी है। टीम पर मैच फिक्सिंग का कलंक लगा और खिलाड़ी प्रतिबंधित हुए। वहीं 2008 में श्रीलंका टीम पर हुए हमले के बाद किसी भी देश ने पाकिस्तान का दौरा करने से इंकार कर दिया। क्रिकेट की बाकी दुनिया से पाकिस्तान पूरी तरह अलग-थलग हो गया। मुंबई हमले के बाद भारत के साथ भी उनके क्रिकेट संबंध बाधित हुए। उन्हें आईपीएल से भी बेदखल कर दिया गया। इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पाकिस्तान अब तक हुए टी-20 विश्व कप के चारों संस्करण के फाइनल में पहुंचा है। दो बार फाइनल का सफर तय किया और एक बार चैंपियन रहा है। दूसरी ओर भारतीय क्रिकेट के साथ काफी समय से सबकुछ ठीक-ठाक रहा है। आईपीएल के दौरान भारतीय खिलाड़ियों का पराक्रम देखते ही बनता है। पर पता नहीं जब देश के लिए खेलते हैं तो बत्ती क्यों गुल हो जाती है। यहां पाकिस्तान का उदाहरण देने का मतलब बस इतना है कि जब वे इनती विकट परिस्थितियों के बावजूद अपनी क्रिकेट को पटरी पर रखे हुए है, तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते। हमारे पास कमी किसी भी चीज की नहीं है। न प्रतिभा की न पैसे की। बस जरूरत है तो सिर्फ सटीक रणनीति की।

9.10.12


कभी अन्य टीमें वेस्टइंडीज के आसपास भी नहीं फटकती थी। एक दौर था जब क्लाइव लॉयड, विव रिचर्ड, डेसमन हेंस, गार्डन ग्रीनीज विश्व के गेंदबाजों के लिए सिरदर्द बने। वहीं मालकॉल्म मार्शल और माइकल होल्डिंग बल्लेबाजों के लिए आतंक का पर्याय। बाद में इनकी परंपरा को कार्ल हूपर, ब्रायन लारा और कर्टनी वाल्स से बखूबी निभाया पर टीम में 70-80 के दशक वाला पराक्रम नहीं दिख रहा था। धीरे-धीरे स्थिति और बिगड़ती गई और आंतरिक कलह से टीम का बंटाधार हो गया। कभी क्रिकेट का बादशाह रहे वेस्टइंडीज की हालत प्यादे के जैसी हो गई। देशवासियों ने टीम से उम्मीदें बांधना ही छोड़ दिया। ऐसे मुश्किल हालात में मिली यह जीत कैरेबियाई क्रिकेट के खोए रुतबे को फिर से हासिल करने की दिशा में महती भूमिका निभाएगी।
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मोहम्मद शकील
वेस्टइंडीज के जश्न मनाने के तरीके को देख कर ही पता चल रहा था कि उपलब्धि कितनी बड़ी है। उपलब्धि वास्तव में बड़ी थी। वेस्टइंडीज क्रिकेट की एक पूरी पीढ़ी ने इस पल के लिए इंतजार किया। आखिरी बार वेस्टइंडीज ने 1979 में क्लाइव लायड के नेतृत्व में एकदिवसीय विश्व कप जीता था। संयोग देखिए, तब वर्तमान टीम को कोई खिलाड़ी पैदा भी नहीं हुआ था। वेस्टइंडीज 1983 में आखिरी बार विश्व कप के फाइनल में पहुंची थी। इसके बाद से 7 एकदिवसीय विश्व कप और 3 ट्वेंटी-20 विश्व कप में वेस्टइंडीज खिताबी से कोसों दूर रहा। पर इस बार टीम ने डेरेन सैमी की प्रेरणादाई अगुवाई में खिताब जीतकर खुद को महान कप्तान क्लाइव लायड की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया।
टीम के कप्तान डैरेन सामी को विंडीज टीम की कमान उस समय मिली थी जब करार के चलते सभी सीनियर खिलाड़ियों को टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। वेस्टइंडीज में उस वक्त ज्यादातर खिलाड़ी नए आए थे और जब डेरेन सैमी को इसकी कप्तानी दी गई तो वह इंडीज के बी-टीम के कप्तान कहलाए। इस बी- टीम का सफर बहुत ही मुशिकल था। बांग्लादेश ने वेस्टइंडीज में आकर उसको वनडे में 3-0 से और टेस्ट में 2-0 से मात दी। इसके बाद भी बोर्ड और खिलाड़ियों का मनमुटाव लंबे समय तक चला। चैंपियंस ट्रॉफी में भी वेस्टइंडीज का यह कप्तान अपनी दोयम दर्जे की टीम के साथ उतरे थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे टीम के खिलाड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का अनुभव होता गया। रवि रामपाल, कीरोन पोलार्ड, केमर रोच, सुनील नरेन, डेरेन ब्रेवो अपनी पहचान बनाने लगे। वहीं बोर्ड ने भी कुछ सीनियर खिलाड़ियों को टीम में जगह देने का मन बना लिया। किसने सोचा था कि बी टीम का कप्तान कहलाए जाने वाले डेरेन सैमी एक दिन वेस्टइंडीज को उनका खोया गौरव वापस दिला देगा।
विश्व कप में हिस्सा लेने श्रीलंका पहुंची वेस्टइंडीज टीम को छुपा रुस्तम तो माना गया, पर यह टीम खिताब उड़ा ले जाएगी, इसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। टीम की सफलता में कप्तान सैमी का महत्वपूर्ण योगादान रहा। टीम को एक सूत्र में बांधने का काम उन्होंने बखूबी किया। विश्व कप में उनका रिकार्ड भले ही ज्यादा प्रभावी न रहा हो पर टूर्नामेंट में उन्होंने अहम मौकों पर विकेट निकाले और कुछ बेशकीमती रन भी बनाए। फाइनल में उन्होंने एंजोलो मैथ्यूज का विकेट लिया, जिसके बाद से श्रीलंका की पारी बुरी तरह ढह गई। साथ ही सैमी द्वारा बनाए गए 15 गेंद पर 26 रन ने अंत में हार-जीत का अंतर पैदा किया। रोचक बात यह है कि 1992 के बाद यह पहला मौका है कि किसी तेज गेंदबाज कप्तान ने विश्व कप जीता हो। अगर डेरेन सैमी को वेस्टइंडीज क्रिकेट का मसीहा कहा जाए तो गलत नहीं होगा। कैरिबियाई क्रि केट की कायापलट करने वाले सैमी से आने वाले दिनों में उम्मीदें और भी बढ़ गईं है।
वेस्टइंडीज ने यह विश्व कप ऐसे समय में जीता है जब क्रिकेट का गढ़ रहे वेस्टइंडीज में ही क्रिकेट दम तोड़ रही थी। एक के बाद एक हार से क्रिकेट की लोकप्रियता खटाई में पड़ रही थी। समर्थकों ने भी कैरेबियाई क्रिकेट को चुका हुआ मान लिया और दूसरे खेलों की तरफ आकर्षित होने लगे। लंदन ओलंपिक में धावकों के शानदार प्रदर्शन ने क्रिकेट की लोकप्रियता पर करारे प्रहार किए। आश्चर्य की बात तो यह है कि वहां बास्केटबॉल लोकप्रियता के मामले में क्रिकेट से आगे निकल गया। ऐसे में विश्व कप की यह जीत परिस्थितियों को काफी हद तक बदल देगी। फिर से लोग क्रिकेट पर भरोसा करेंगे। लगभग मृतप्राय हो चुकी कैरेबियाई क्रिकेट एक बार फिर कुलांचे भरेगा। सैमी ने वेस्टइंडीज क्रिकेट को एक नई जिंदगी दी है। जरा सोचिए वेस्टइंडीज टीम को विश्व चैंपियन बनते देख क्लाइव लॉयड को कितना सुकून मिल रहा होगा।

18.9.12




लगता है हॉकी के गढ़ में ही हॉकी की पूछ-परख नहीं है। भोपाल ने देश को एक से बढ़कर एक हॉकी खिलाड़ी दिए हैं, हॉकी का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है, भोपालवासियों का हॉकी के साथ भावनात्मक बंधन बेहद शसक्त है, यहां हॉकी दिवानगी नहीं बल्कि जुनून है, इसके बावजूद भोपाल फ्रेंचाइजी के लिए कोई आगे नहीं आ रहा..

 मोहम्मद शकील, भोपाल
शाम के साथ बजते ही पुल बोगदा से ऐशबाग स्टेडियम की सड़कों पर गहमागहमी। दुधिया रौशनी में नहाए स्टेडियम से आसमान में दूर तक उठती रौशनी लोगों को स्टेडियम में आने का मूक निमंत्रण देती थी। हर गोल पर ‘दे घुमा के..’ की धुन पर स्टेडियम में थिरकते दर्शक भोपाल को हॉकी की नर्सरी होने का अहसास दिलाते थे। यह नजारा हुआ करता था विश्व सीरीज हॉकी के दौरान जब भोपाल बादशाह अपने घरेलू मैदान पर खेला करती थी। लोगों को उम्मीद थी कि हॉकी इंडिया द्वारा शुरू हो रहे हॉकी इंडिया लीग में भोपाल की टीम जरूर नजर आएगी। ऐसा लगता है कि भोपालवासियों की इस उम्मीद को पंख नहीं लग पाएंगे।
अगले साल जनवरी में होने वाले बहुप्रतीक्षित हॉकी इंडिया लीग (एचआईएल) में भोपाल फ्रेंचाइजी आधारित टीम के दिखने की संभावना बेहद धुंधला गई है। हॉकी इंडिया द्वारा आयोजित इस लीग में छह शहरों की फ्रेंचाइजी आधारित कुल छह टीमें हिस्सा लेंगी। इनमें से 4 की घोषणा हॉकी इंडिया द्वारा कर दी गई है। ये है- लखनऊ, रांची, पंजाब और दिल्ली। हॉकी इंडिया के विश्वस्त सूत्रों की माने तो पांचवीं टीम चेन्नई भी तय मानी जा रही है। यानी अब सिर्फ एक टीम बची है और भोपाल, बेंगलुरू और मुंबई के बीच इस एक स्थान के लिए मुकाबला है।

बेंगलुरू और मुंबई का पलड़ा भारी
निश्चित रूप से फ्रेंचाइजी के लिए बेंगलुरू और मुंबई पहली पसंद होगा। बेंगलुरू में हॉकी का बेहतरीन कल्चर है। साथ ही राष्ट्रीय टीम के अधिकांश कैंप यहीं लगते है। वहीं मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है और लोकप्रियता की दृष्टि से मुंबई को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यानी प्रस्तावित हॉकी इंडिया लीग में भोपाल नाम से कोई टीम नजर आएगी, इस पर संशय है। उधर भोपाल फ्रेंचाइजी पर हॉकी इंडिया के अधिकारियों का कहना है कि भोपाल स्वंय इस लीग में भाग लेने को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं है।

..तो मिल सकती है भोपाल को जगह
भोपाल को हॉकी की नर्सरी होने का गौरव प्राप्त है। इसकी एक बानगी हमें विश्व सीरीज हॉकी में देखने को मिली थी। इसमें भोपाल बादशाह की टीम खेली थी। आंकड़े यह बताते हैं कि विश्व सीरीज हॉकी में बाकी शहरों की तुलना में भोपाल में सबसे ज्यादा दर्शक उमड़े थे। ऐसे में हॉकी इंडिया के लिए भी भोपाल को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा। सूत्रों की माने तो भोपाल आधारित फ्रेंचाइजी को स्थान देने के लिए टीमों की संख्या भी बढ़ाई जा सकती है। पर इसके लिए जरूरी है कि भोपाल फ्रेंचाइजी के लिए कोई आगे आए।

भोपाल का न होना दुर्भाग्यपूर्ण: जलालुद्दीन
नवगठित संगठन हॉकी भोपाल के सचिव सैय्यद जलालुद्दीन रिजवी का कहना है कि यदि प्रस्तावित लीग में भोपाल की टीम नजर नहीं आती है तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होगा। भोपाल में हॉकी का माहौल है और लोगों को काफी उम्मीदें थी। यदि कोई स्पांसर आगे आकर भोपाल टीम की फ्रेंचाइजी लेता तो इससे भोपाल में हॉकी एक बार फिर परवान चढ़ती और अपने खोए गौरव को पाने की दिशा में मजबूत कदम होता।

''हम चाहते हैं कि लीग में भोपाल की टीम हो। पर यह हमारे हाथ में नहीं है। इसके लिए जरूरी है कोई फेंचाइजी के लिए आगे आए। भोपाल को लीग में शामिल कर हमें खुशी होगी। ''
 नरेंदर बत्र, चेयरमेन, हॉकी इडिया लीग।