13.3.14

सुकून दिल को न मिलता किसी बहाने से
बहुत उदास हो जाता हूं तेरे जाने से

नहा रहा है पसीने से फूल बागों में
चटक रही है कली उसके मुस्कुराने से

फिर एक बार इरादा किया है मिटने का
ये बात जा के कोई कह तो दे जमाने से

जवान बेटी की शादी की फिक्र है शायद
वो रात को भी न आता है कारखाने से

शहर में जुल्म हुआ किस तरह से दीपों पर
'इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से'

लिखोगी रोज मुझे खत ये तय हुआ था पर
खबर न आज भी आई है डाकखाने से

‘शकील’ और न रुसवा हो अब जमाने में
कि बाज आ भी जा अब तू फरेब खाने से
—शकील जमशेदपुरी

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