6.1.11

6 दिसंबर 2010 को दिग्विजय सिंह का एक बयान आया था. उनहोंने यह बयान राष्ट्रीय रोजनाम सहारा के समूह सम्पादक अज़ीज़ बर्नी के एक पुस्तक के विमोचन समारोह में कही थी. उन्होंने कहा था कि 26/11 की घटना के महज़ तीन घंटे पूर्व हेमंत करकरे ने मुझ से फ़ोन पर बात की थी. इस बातचीत में श्री करकरे ने मुझसे कहा था कि हिन्दू कट्टरपंथी से मेरी जान को खतरा है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि में बहुत तकलीफ में हूँ. मेरा 17 वर्षीय बेटा, जो विद्यार्थी है, उसे दुबई में एक बड़ा Contracter  बता कर बदनाम किया जा रहा है. मेरे परिवार वाले जो नागपुर में रहते हैं, उन्हें बम से उड़ाने कि धमकियां दी जा रही है.
 जैसे ही दिग्विजय सिंह का यह बयान आया, राजनीतिक हलकों में भूचाल आ गया. जब ये बात संघी कानों तक पहुंची तो उनकी भृकुटियाँ तन गयी. दिग्विजय सिंह के निष्ठां पर सवाल उठाए गए और उन्हें देशद्रोही तक कि संज्ञा दे दी गयी. यह भी कहा गया कि दिग्विजय सिंह दोयम दर्जे कि सियासत कर रहे हैं. कांग्रेस तो पहले से ही मुश्किलों में घिरी थी, इसलिए उन्होंने श्री सिंह के इस बयान से ही पलड़ा झाड लिया. बहरहाल दिग्विजय सिंह अपने बयान पर डटे रहे और ठीक 28 दिन बाद 4 जनवरी 2011 को बातचीत के कॉल डिटेल बतौर सबूत ज़ारी किये. गौरतलब है कि महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर पाटिल ने विधानसभा में बयान दिया था कि राज्य पुलिस के पास करकरे और सिंह के बीच 26 नवम्बर 2008 को हुई बातचीत का कोई रिकॉर्ड नहीं है. दिग्विजय सिंह द्वारा ज़ारी कॉल डिटेल से यह पता चलता है कि फ़ोन ATS मुख्यालय के लैंडलाइन  नंबर 022-23087366 से किया गया था. अब भाजपा यह कह रही है कि इससे यह साबित नहीं होता कि ATS मुख्यालय से कॉल करने वाले व्यक्ति स्वयं करकरे ही थे. खैर यह सियासत है और सियासत में पैतरेबाजी अपने शबाब पर होती है. आखरी दम तक.
           हालाँकि दिग्विजय सिंह के बयान में गंभीरता थी, पर ऐसी क्या बात कह दी उन्हों ने जो एक दम अनूठी और नयी थी. कम से कम हमारी मीडिया को तो ये पता था ही कि मालेगांव ब्लास्ट  के सिलसिले में हेमंत करकरे को लगातार धमकियां मिल रही थी. ऐसे समाचार राष्ट्रीय मीडिया में प्रकाशित-प्रसारित भी हुए. जो कुछ 26/11 की घटना से पूर्व हेमंत करकरे ने दिग्विजय सिंह से कही, वही बात उन्होंने एक दिन पूर्व अपने एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी श्री जुलियू रिबौरो से मुलाकात करके कही थी. यह समाचार अंगरेजी दैनिक Times Of India के अतिरिक्त अन्य समाचारपत्रों में भी प्रकाशित हिया था. इस समाचार का शीर्षक था- करकरे अडवानी द्वारा लगाये आरोप से दुखी थे: जुलियू रिबौरो.
             Times Of India में प्रकाशित यह खबर जुलियू रिबौरो के हवाले से थी. इसमें श्री रिबौरो ने कहा था-" हेमंत करकरे पिछले मंगलवार को मुझसे मिलने आये थे. एल.के अडवानी के इस आरोप से उन्हें बहुत दुख पहुंचा था कि उनके नेतृत्व में ATS मालेगांव ब्लास्ट के केस में राजनीतिक प्रभाव और अव्यावहारिक ढंग से कार्य कर रहा है. अडवानी जैसे वरीष्ठ नेता के हिंदुत्व  के झंडा बरदार बनने वालों के साथ मिलकर आरोप लगाने ने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया था. ........."
यानि इतना तो था ही कि हेमंत करकरे संघ के रवैये से आहात थे. पर जब इसी बात का खुलासा दिग्विजय सिंह
ने किया तो हंगामा बरपा हो गया. मीडिया ने भी इस मामले को खूब हवा दी, जैसे यह एकदम नयी बात हो. वो भी तब, जब संसद JPC कि मांग को लेकर लगातार हंगामे कि भेंट चढ़ रही थी, विकिलीक्स दिन-प्रतिदिन नए खुलासे करके दुनिया भर कि मीडिया का ध्यान अपनी और आकर्षित कर रहा था, और इस बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बेल्जियम तथा जर्मनी कि महत्वपूर्ण यात्रा भी कि थी. 
                     आपलोगों को शायद याद होगा कि 26/11 कि घटना के बाद तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ए.आर.अंतुले ने हेमंत करकरे कि शहादत पर सवाल उठाए थे. तब देशव्यापी विरोध प्रदर्शन हुआ था. जगह-जगह अंतुले के पुतले जलाये गए. लोगों के हाथों में पोस्टर था, जिस पर लिखा था- ए.आर अंतुले आतंकवादी है.......ए.आर अंतुले देशद्रोही है. दिग्विजय सिंह के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. 
खैर दिग्विजय सिंह ने अपने बयान के पक्ष में सबूत ज़ारी कर दिए हैं. लेकिन एक सवाल आज भी कितना ज्वलंत लगता है- 26/11 -किस की साजिश, क्या उठेगा पर्दा?

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