पलकों से आसमां पर एक तस्वीर बना डाली.
उस तस्वीर के नीचे एक नाम लिख दिया;
फीका है इसके सामने चाँद ये पैगाम लिख दिया
सितारों के ज़रिये चाँद को जब ये पता चला
एक रोज़ अकेले में वो मुझसे उलझ पड़ा
कहने लगा कि आखिर ये माजरा क्या है
उस नाम और चेहरे के पीछे का किस्सा क्या है.
मैं ने कहा- ऐ चाँद क्यूं मुझसे उलझ रहा है तूं
टूटा तेरा गुरूर तो मुझ पर बरस रहा है तूं.
वो तस्वीर मेरे महबूब की है, ये जान ले तूं
तेरी औकात नहीं उसके सामने, यह मान ले तूं.
ये सुन के चाँद ने गुसे में ये कहा-
अकेला हूँ काइनात में, तुझे शायद नहीं पता.
लोग मवाजना करते हैं मुझसे अपनी महबूब का
चेहरा दिखता है मुझ में हरेक को अपनी माशूक का.
मैंने कहा- ऐ चाँद चल तेरी बात मान लेता हूँ,
पर तेरे हुस्न का जायजा मैं हर शाम लेता हूँ
मुझे लगता है आइना तुने देखा नहीं कभी.
एक दाग है तुझमें जो उस चेहरे मैं है नहीं.
यह सुन के चाँद बोला ये मोहब्बत कि निशानी है.
इसके ज़रिये मिझे नीचा न दिखाओ ये सरासर बेमानी है.
जिस शाम लोगों को मेरी दीद नहीं होती
अगले रोज़ तो शहर में ईद नहीं होती.
मैंने कहा ऐ चाँद, तू ग़लतफ़हमी का है शिकार.
सच्चाई ये है कि तूं मुझसे गया है हार.
एक रोज़ मेरा महबूब छत पर था और शाम ढल गयी.
अगले दिन शहर में ईद कि तारीख बदल गयी.
ये आखरी बात ज़रा ध्यान से सुनना.
हो सके तो फिर अपने दिल से पूछना.
यह एक हकीक़त है कोई टीका टिप्पणी नहीं है.
जिस चांदनी पे इतना गुरूर है तुझको,
वो रौशनी भी तो तेरी अपनी नहीं है.
उस तस्वीर के नीचे एक नाम लिख दिया;
फीका है इसके सामने चाँद ये पैगाम लिख दिया
सितारों के ज़रिये चाँद को जब ये पता चला
एक रोज़ अकेले में वो मुझसे उलझ पड़ा
कहने लगा कि आखिर ये माजरा क्या है
उस नाम और चेहरे के पीछे का किस्सा क्या है.
मैं ने कहा- ऐ चाँद क्यूं मुझसे उलझ रहा है तूं
टूटा तेरा गुरूर तो मुझ पर बरस रहा है तूं.
वो तस्वीर मेरे महबूब की है, ये जान ले तूं
तेरी औकात नहीं उसके सामने, यह मान ले तूं.
ये सुन के चाँद ने गुसे में ये कहा-
अकेला हूँ काइनात में, तुझे शायद नहीं पता.
लोग मवाजना करते हैं मुझसे अपनी महबूब का
चेहरा दिखता है मुझ में हरेक को अपनी माशूक का.
मैंने कहा- ऐ चाँद चल तेरी बात मान लेता हूँ,
पर तेरे हुस्न का जायजा मैं हर शाम लेता हूँ
मुझे लगता है आइना तुने देखा नहीं कभी.
एक दाग है तुझमें जो उस चेहरे मैं है नहीं.
यह सुन के चाँद बोला ये मोहब्बत कि निशानी है.
इसके ज़रिये मिझे नीचा न दिखाओ ये सरासर बेमानी है.
जिस शाम लोगों को मेरी दीद नहीं होती
अगले रोज़ तो शहर में ईद नहीं होती.
मैंने कहा ऐ चाँद, तू ग़लतफ़हमी का है शिकार.
सच्चाई ये है कि तूं मुझसे गया है हार.
एक रोज़ मेरा महबूब छत पर था और शाम ढल गयी.
अगले दिन शहर में ईद कि तारीख बदल गयी.
ये आखरी बात ज़रा ध्यान से सुनना.
हो सके तो फिर अपने दिल से पूछना.
यह एक हकीक़त है कोई टीका टिप्पणी नहीं है.
जिस चांदनी पे इतना गुरूर है तुझको,
वो रौशनी भी तो तेरी अपनी नहीं है.
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2:59 pm
शकील समर
Posted in

maja aa gaya .............
जवाब देंहटाएंuttam ati uttam ......
bahut acha likha hai shakeel miya ..