9.7.11

अज्ञात नामक  एक गांव था। इस गांव के विषय में असामान्य यह था कि यहां सभी अनपढ़ लोग रहते थे। सिर्फ चतुर्वेदी जी को छोड़ कर। ऐसा नहीं था कि चतुर्वेदी जी बहुत बड़े विद्वान थे। चूंकि वह गांव के बाकी लोगों से ज्यादा पढ़े लिखे थे, यहां वहां भ्रमण करते रहते थे, इसलिए लोगों की नजर में किसी विद्वान से कम नहीं थे। चतुर्वेदी जी की एक अच्छी आदत थी। जब भी वह कहीं कोई नई चीज देखते, उसे अपनी डायरी में नोट में कर लेते। पर उनकी एक बुरी आदत भी थी। वह नई चीजों का नाम तो लिखते थे पर उसका विवरण नहीं लिखते थे। एक बार वह एक मेला घूमने गए। वहां उसे एक भीमकाय जानवर दिखा। लोगों  से उसने पूछा कि यह क्या है? जवाब आया कि यह हाथी है। अपनी आदत के अनुसार चतुर्वेदी जी ने अपने डायरी में लिख लिया-हाथी। थोड़ी देर घूमने के बाद उसे एक गोलाकार वस्तु दिखाई दी। लोगों से पूछने पर उन्हें पता चला  कि यह जामुन है। चतुर्वेदी जी ने अपनी डायरी मे लिख लिया- जामुन। चतुर्वेदी जी ने ना ही हाथी का विवरण लिखा और न ही जामुन का। हां उन्होंने दोनों के आगे काला शब्द जरूर लिखा था।
इत्तेफाक से कुछ दिनों बाद गांव में एक हाथी आया। गांव वालों के लिए यह एक कौतुहल का विषय बन गया क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि यह जानवर है क्या। लोगों ने सोच कि क्यों न चतुर्वेदी जी के पास चलते है। वह पढ़े लिखे हैं। जगह-जगह घूमते रहते हैं। उन्हें जरूर पता होगा इस जानवर के बारे में। लोगों के बुलावे पर चतुर्वेदी जी हाथी के पास पहुंचे। हाथी को देखने के बाद फौरन उसे याद आया कि इसे पहले कहीं देखा है। तत्काल उन्होंने अपनी डायरी निकाली। डायरी में दो चीजें लिखी थी- हाथी और जामुन। अब चतुर्वेदी जी दुविधा में पड़ गए कि यह हाथी है या जामुन? क्योंकि किसी का विवरण तो उन्होंने लिखा था नहीं। पूरे गांव की भीड़ एकत्र थी और चतुर्वेदी जी को उस जानवर के बारे में बताना था। काफी विचार-विमर्श करन के बाद भी चतुर्वेदी जी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए कि यह हाथी है या जामुन। अंतत: उन्होंने गांव वालों को संबोधित करते हुए कहा- "देखिए विद्वानों में बहुत मतभेद है। कोई  इसे हाथी कहता है और कोई इसे जामुन।"
(यह कहानी मैंने कहीं सुनी थी)

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