तेरी तस्वीर भी मुझसे रू-ब-रू नहीं होती
भले मैं रो भी देता हूँ गुफ्तगू नहीं होती
तुझे मैं क्या बताऊँ जिंदगी में क्या नहीं होता
ईद पर भी सवईयों में तेरी खुशबू नहीं होती
जिसे देखूं , जिसे चाहूं, वो मिलता है नहीं मुझको
हर एक सपना मेरा हर बार चकना-चूर होता है
ज़माने भर की सारी ऐब मुझको दी मेरे मौला
मैं जिसके पास जाता हूँ, वो मुझसे दूर होता है.
दिल में हो अगर गम तो छलक जाती है ये आँखें
ये दिल रोए, हँसे आँखे हमेशा यूं नहीं होता
ज़माने भर की सारी ऐब मुझको दी मेरे मौला
किसी पत्थर को भी छू दूं , वो मेरा क्योँ नहीं होता?
गीत में स्वर नहीं मेरे ग़ज़ल बिन ताल गाता हूँ
अगर सुर को मनाऊँगा, तराना रूठ जाएगा,,,
ये कैसी कशमकश उलझन मुझे दे दी मेरे मौला
अगर तुमको मनाऊँगा, ज़माना रूठ जाएगा.
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8:28 pm
शकील समर
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वाह, क्या बात कही आपने।
जवाब देंहटाएंइस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई, शकील जी।
अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
जवाब देंहटाएंaap yahan aaye..........achchha laga........dhanyawad.
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