एक तरही गजल -
हरेक सिम्त शजर के सिवा कुछ और नहीं
मेरी तलब है ख़िज़र के सिवा कुछ और नहीं
नजर की ज़द में लहर के सिवा कुछ और नहीं
मगर तलाश गुहर के सिवा कुछ और नहीं
हरेक रोज की उलझन है और दुश्वारी
हयात जैसे बहर के सिवा कुछ और नहीं
जला के बस्तियां संसद में चींखता है वो
हमें तो फिक्र-ए-बशर के सिवा कुछ और नहीं
हरा-भरा है मगर ये शजर कटेगा जरूर
सभी को शौक़-ए-समर के सिवा कुछ और नहीं
तुम्हारे पास 'पहुंच' भी है और 'पैसा' भी
हमारे पास हुनर के सिवा कुछ और नहीं
किया जो इश्क तो ये राज भी खुला हम पर
'हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं'
बुरा न मानो तो इक बात मैं कहूं तुमसे
तेरी ये बिंदी क़मर के सिवा कुछ और नहीं
तुम्हारी आंखें मुझे लग रहीं हैं मयखाने
ये जाम तेरी नजर के सिवा कुछ और नहीं
सही था फैसला तेरा कि मुझसे दूर हुए
'शकील' एक भंवर के सिवा कुछ और नहीं
-शकील समर
हरेक सिम्त शजर के सिवा कुछ और नहीं
मेरी तलब है ख़िज़र के सिवा कुछ और नहीं
नजर की ज़द में लहर के सिवा कुछ और नहीं
मगर तलाश गुहर के सिवा कुछ और नहीं
हरेक रोज की उलझन है और दुश्वारी
हयात जैसे बहर के सिवा कुछ और नहीं
जला के बस्तियां संसद में चींखता है वो
हमें तो फिक्र-ए-बशर के सिवा कुछ और नहीं
हरा-भरा है मगर ये शजर कटेगा जरूर
सभी को शौक़-ए-समर के सिवा कुछ और नहीं
तुम्हारे पास 'पहुंच' भी है और 'पैसा' भी
हमारे पास हुनर के सिवा कुछ और नहीं
किया जो इश्क तो ये राज भी खुला हम पर
'हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं'
बुरा न मानो तो इक बात मैं कहूं तुमसे
तेरी ये बिंदी क़मर के सिवा कुछ और नहीं
तुम्हारी आंखें मुझे लग रहीं हैं मयखाने
ये जाम तेरी नजर के सिवा कुछ और नहीं
सही था फैसला तेरा कि मुझसे दूर हुए
'शकील' एक भंवर के सिवा कुछ और नहीं
-शकील समर
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