दिल में हो कुछ और मगर चेहरे से कुछ और दिखाने का
अनजान था अपनी सूरत से मैं
दर्पण नैन के उसने दिखलाई
एहसास-ए-मोहब्बत से था खाली
प्रेम फूल के उसने खिलाई
इरादे उसकी समझ न पाया जो था मुझको मिटाने का
हुनर हमने भी सीख लिया है फर्जी रिश्ता बनाने का
चारों तरफ था अंधियारा
वो आशा की एक किरण थी
रौशनी ने दस्तक दी थी
वो सूरज की एक किरण थी
रौशनी का खेल असल में खेल था मुझको मिटाने का
हुनर हमने भी सीख लिया है फर्जी रिश्ता बनाने का
प्यार न करना तुम यारो
न पड़ना तुम इस चक्कर में
तेरा ही दिल टूटेगा
दो दिलों की इस टक्कर में
फिर भी यदि तुम कर बैठो तो कोशिश न करने निभाने का
हुनर तुम भी अब सीख लो यारो फर्जी रिश्ता बनाने का
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें