18.9.12




लगता है हॉकी के गढ़ में ही हॉकी की पूछ-परख नहीं है। भोपाल ने देश को एक से बढ़कर एक हॉकी खिलाड़ी दिए हैं, हॉकी का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है, भोपालवासियों का हॉकी के साथ भावनात्मक बंधन बेहद शसक्त है, यहां हॉकी दिवानगी नहीं बल्कि जुनून है, इसके बावजूद भोपाल फ्रेंचाइजी के लिए कोई आगे नहीं आ रहा..

 मोहम्मद शकील, भोपाल
शाम के साथ बजते ही पुल बोगदा से ऐशबाग स्टेडियम की सड़कों पर गहमागहमी। दुधिया रौशनी में नहाए स्टेडियम से आसमान में दूर तक उठती रौशनी लोगों को स्टेडियम में आने का मूक निमंत्रण देती थी। हर गोल पर ‘दे घुमा के..’ की धुन पर स्टेडियम में थिरकते दर्शक भोपाल को हॉकी की नर्सरी होने का अहसास दिलाते थे। यह नजारा हुआ करता था विश्व सीरीज हॉकी के दौरान जब भोपाल बादशाह अपने घरेलू मैदान पर खेला करती थी। लोगों को उम्मीद थी कि हॉकी इंडिया द्वारा शुरू हो रहे हॉकी इंडिया लीग में भोपाल की टीम जरूर नजर आएगी। ऐसा लगता है कि भोपालवासियों की इस उम्मीद को पंख नहीं लग पाएंगे।
अगले साल जनवरी में होने वाले बहुप्रतीक्षित हॉकी इंडिया लीग (एचआईएल) में भोपाल फ्रेंचाइजी आधारित टीम के दिखने की संभावना बेहद धुंधला गई है। हॉकी इंडिया द्वारा आयोजित इस लीग में छह शहरों की फ्रेंचाइजी आधारित कुल छह टीमें हिस्सा लेंगी। इनमें से 4 की घोषणा हॉकी इंडिया द्वारा कर दी गई है। ये है- लखनऊ, रांची, पंजाब और दिल्ली। हॉकी इंडिया के विश्वस्त सूत्रों की माने तो पांचवीं टीम चेन्नई भी तय मानी जा रही है। यानी अब सिर्फ एक टीम बची है और भोपाल, बेंगलुरू और मुंबई के बीच इस एक स्थान के लिए मुकाबला है।

बेंगलुरू और मुंबई का पलड़ा भारी
निश्चित रूप से फ्रेंचाइजी के लिए बेंगलुरू और मुंबई पहली पसंद होगा। बेंगलुरू में हॉकी का बेहतरीन कल्चर है। साथ ही राष्ट्रीय टीम के अधिकांश कैंप यहीं लगते है। वहीं मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है और लोकप्रियता की दृष्टि से मुंबई को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यानी प्रस्तावित हॉकी इंडिया लीग में भोपाल नाम से कोई टीम नजर आएगी, इस पर संशय है। उधर भोपाल फ्रेंचाइजी पर हॉकी इंडिया के अधिकारियों का कहना है कि भोपाल स्वंय इस लीग में भाग लेने को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं है।

..तो मिल सकती है भोपाल को जगह
भोपाल को हॉकी की नर्सरी होने का गौरव प्राप्त है। इसकी एक बानगी हमें विश्व सीरीज हॉकी में देखने को मिली थी। इसमें भोपाल बादशाह की टीम खेली थी। आंकड़े यह बताते हैं कि विश्व सीरीज हॉकी में बाकी शहरों की तुलना में भोपाल में सबसे ज्यादा दर्शक उमड़े थे। ऐसे में हॉकी इंडिया के लिए भी भोपाल को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा। सूत्रों की माने तो भोपाल आधारित फ्रेंचाइजी को स्थान देने के लिए टीमों की संख्या भी बढ़ाई जा सकती है। पर इसके लिए जरूरी है कि भोपाल फ्रेंचाइजी के लिए कोई आगे आए।

भोपाल का न होना दुर्भाग्यपूर्ण: जलालुद्दीन
नवगठित संगठन हॉकी भोपाल के सचिव सैय्यद जलालुद्दीन रिजवी का कहना है कि यदि प्रस्तावित लीग में भोपाल की टीम नजर नहीं आती है तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होगा। भोपाल में हॉकी का माहौल है और लोगों को काफी उम्मीदें थी। यदि कोई स्पांसर आगे आकर भोपाल टीम की फ्रेंचाइजी लेता तो इससे भोपाल में हॉकी एक बार फिर परवान चढ़ती और अपने खोए गौरव को पाने की दिशा में मजबूत कदम होता।

''हम चाहते हैं कि लीग में भोपाल की टीम हो। पर यह हमारे हाथ में नहीं है। इसके लिए जरूरी है कोई फेंचाइजी के लिए आगे आए। भोपाल को लीग में शामिल कर हमें खुशी होगी। ''
 नरेंदर बत्र, चेयरमेन, हॉकी इडिया लीग।

13.9.12

गेल, नरेन, ब्रावो और पोलार्ड बदलेंगे समीकरण

मोहम्मद शकील, भोपाल
18 सितंबर से जब 12 टीमें टी-20 विश्व कप के खिताब के लिए मैदान पर जोरआजमाइश करेंगी तो दुनिया की नजर भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड जैसी हाई प्रोफाइल टीमों पर रहेगी। भले ही वेस्टइंडीज को काई ज्यादा भाव न दे रहा हो, पर टीम संयोजन को देखते हुए उसे खिताब का दावेदार कहना गलत नहीं होगा। टीम का संयोजन टी-20 के लिए पूरी तरह से अनुकूल है। बात चाहे तेज बल्लेबाजी की हो या गेंदबाजी की, वेस्टइंडीज की टीम पूरी तरह से संपूर्ण नजर आती है। आईपीएल के हालिया संस्करण में सुनील नरेन और क्रिस गेल ने जिस स्तर का प्र्दशन किया है, उससे टीम काफी मजबूत हुई है। विशेषकर श्रीलंका के टर्निग विकेट पर नरेन की भूमिका निर्णायक रहने वाली है।
टीम में क्रिस गेल और कीरोन पोलार्ड जैसे विस्फोटक बल्लेबाज हैं। नरेन के बारे में सैमी कहते हैं कि हमारे पास टी-20 क्रिकेट का अभी सर्वश्रेष्ठ स्पिनर है और वह हमारे लिए वास्तव में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। बेशक नरेन को श्रीलंका की पिचों से मदद मिलेगी। क्रिस के आने से बल्लेबाजी अनुभवी हो गई है तथा पोलार्ड, ड्वेन ब्रावो, ड्वेन स्मिथ और आंद्रे रसेल जैसे खिलाड़ी मैच का रुख बदलने का माद्दा रखते हैं।

गौरवशाली रहा है वेस्टइंडीज का इतिहास

वेस्टइंडीज क्रिकेट का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है। क्लाइव लॉयड की कप्तानी में कभी वेस्टइंडीज मारक क्षमता वाली टीम हुआ करती थी। उन्होंने 1970 से 1980 तक क्रिकेट पर एकछत्र राज किया है। लेकिन इसके बाद उसकी टीम को संघर्ष करना पड़ा और तेजी से पतन हुआ। सैमी की अगुवाई वाली टीम को टी-20 विश्व कप में खिताब पर कब्जा जमा सकती है। वेस्टइंडीज ने 2004 में चैंपियंस ट्राफी जीतने के बाद कोई बड़ा टूर्नामेंट नहीं जीता है।

12.9.12

इस बार एशियाई महाद्वीप में हो रहे टी-20 विश्व कप में स्पिनरों की भूमिका अहम रहने वाली है। एशियाई पिचें शुरू से ही स्पिनरों के लिए स्वर्ग रही है। ऐसे में इस विश्व कप में बल्लेबाज लट्टू की तरह नाचते हुए दिखेंगे। भारत की ओर से इस भूमिका का निर्वाहन आर. अश्विन करेंगे। न्यूजीलैंड के विरुद्ध टेस्ट सीरीज  में उन्होंने 18 विकेट लिए थे। उम्मीद तो यही है कि श्रीलंका के पिचों पर भी वह बल्लेबाजों को अपनी फिरकी के जाल में फसाएंगे। जब गेंद पाकिस्तान के सईद अजमल के हाथों में होती है तो विकेट गिरने का अंदेशा होने लगता है। टी-20 में इन्हें विकेट मशीन कहा जा सकता है। 41 मैचों में 58 विकेट कम नहीं होते। शाहिद अफ्रीदी के बारे में भी यही कहा जा सकता है। जितना बल्ले से करते हैं उससे कहीं ज्यादा गेंद से करते हैं। टर्न के साथ रफ्तार इस बार भी बल्लेबाजों के लिए कड़ी चुनौती होगी। इस कड़ी में एक और नाम आता है, वेस्टइंडीज के सुनील नरेन का। आईपीएल के जरिए अपनी गेंदबाजी से इन्होंने जितनी सुर्खियां बंटोरी, उतनी पिछले एक दशक में किसी विदेशी गेंदबाजों को नहीं मिली है। ये वह खिलाड़ी हैं जिनके कंधों पर अपनी टीम को चैंपियन बनाने का जिम्मा है।   

11.9.12


भारतीय टीम जब 18 सितंबर से टी-20 विश्व के अभियान की शुरूआत करेगी तो टीम को सबसे ज्यादा कमी एक ऑलराउंडर की खलेगी। क्रिकेट के इस छोटे संस्करण में ऑलराउंडर की भूमिका अहम हो जाती है। विश्व कप में हिस्सा ले रही ज्यादातर टीमों के पास बेहतरीन ऑलराउंडर है। पर भारत के पास ऑलराउंडर के नाम पर सिर्फ इरफान पठान है। पठान भी गेंदबाज ज्यादा और बल्लेबाज कम हैं। यह भारत की विफलता रही है कि कपिल देव के बाद सही मायने में कोई ऑलराउंडर भारत नहीं ढूंढ पाया।
2007 में जब हम खिताब जीते थे तब भी स्थिति यही थी। पांच साल बाद आज भी कुछ नहीं बदला। भारतीय बोर्ड ने आईपीएल को यह कह कर प्रोत्साहित कया कि इससे घरेलू प्रतिभाएं निकलेंगी। आश्चर्य है, आईपीएल के पांच संस्करण भी हमें एक अदद ऑलराउंडर नहीं दे पाया। ध्यान रहे पठान आईपीएल की देन नहीं हैं।  2007 विश्व कप के भारतीय टीम की तुलना अगर इस विश्व कप के टीम से की जाए तो इस बार 6 नए चेहरे है। इन 6 में से 4 खिलाड़ी ही ऐसे है जो 2007 के बाद प्रकाश में आए। सुरेश रैना, आर अश्विन, अशोक डिंडा और विराट कोहली। यानी पिछले 5 साल में हमें टी-20 के लिए उपयोगी सिर्फ 4 खिलाड़ी ही मिले है। उसमें भी कोई ऑलराउंडर नहीं। उम्मीद है, विश्व कप में ऑलराउंडर की कमी को रैना, सहवाग और रोहित शर्मा पूरी करेंगे।
टी-20 विश्व कप के चार ग्रुप में से प्रत्येक ग्रुप में एक कमजोर कड़ी है। ग्रुप ‘ए’ में भारत के साथ अफगानिस्तान है, तो ग्रुप ‘बी’ में आयरलैंड। वहीं ग्रुप सी और डी में क्रमश: जिम्बाब्वे और बांग्लादेश की टीम है (इसे कमजोर समझना बेमानी होगी)।  इतना तो तय है कि अफगानिस्तान, आयरलैंड और जिम्बाब्वे के लिए कप तक पहुंचना लगभग नामुमकिन है। मैं बंग्लादेश को इस श्रेणी में नहीं रखना चाहता, क्योंकि एशिया कप के फाइनल में पहुंचकर और फाइनल करीब-करीब जीतकर वह मुख्य धारा की टीम बन गई है। तो फिर आयरलैंड, अफगानिस्तान और जिम्बाब्वे का मकसद क्या होगा? जाहिर है, बड़ी टीमों को चौंकाना। उलटफेर करना। टी-20 विश्व कप के इतिहास में उलटफेर होते रहे हैं। 2007 में हुए पहले टी-20 विश्व कप में बांग्लादेश (तब अमूमन कमजोर टीम हुआ करती थी) ने वेस्टइंडीज को 6 विकेट से हराकर टूर्नामेंट से ही बाहर कर दिया था। यह तो फिर भी स्वीकार्य था। लेकिन ग्रुप बी के एक मैच ने सबका ध्यान खींचा। जिम्बाब्वे जैसी कमजोर टीम ने कंगारूओं को धर दबोचा। वो तो भला हो कि जिम्बाब्वे का नेट रन रेट थोड़ा कम पड़ गया, अन्यथा आस्ट्रेलिया का पत्ता साफ हो जाता। टी-20 विश्व कप के दूसरे संस्करण में भी उलटफेर हुए। आयरलैंड ने बांग्लादेश को न सिर्फ हराया बल्कि उसे प्रतियोगिता से भी बाहर कर दिया। पर इस संस्करण का असली उलटफेर अभी बाकी था। हॉलैंड ने अपने चिर प्रतिद्वंद्वी इंग्लैंड को 4 विकेट से हराकर सनसनी मचा दी। हॉलांकि बेहतर रन रेट से इंग्लैंड नॉकआउट तक पहुंचने में कामयाब रहा। हॉलैंड की टीम इस बार विश्व कप के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई।
सिर्फ टी-20 में ही नहीं, एकदिवसीय में भी ऐसी टीमें उलटफेर करने में माहिर रहीं है। 2007 विश्व कप में बांग्लादेश ने भारत को हरा कर बाहर कर दिया था। यही हश्र आयरलैंड के हाथों हार कर पाकिस्तान का हुआ। 2011 विश्व कप में भी आयरलैंड ने इंग्लैंड को हराया था। यह जीत इस लिए बड़ी थी क्योंकि आयरलैंड ने 329 रन का लक्ष्य हासिल किया था। उलटफेर के इस सिलसिले का इस विश्वकप में भी जारी रहने की संभावना है। क्योंकि कमजोर टीमों का मूल मंतव्य बड़े टीमों का शिकार कर उनका समीकरण बिगाड़ने का होता है।

मोहम्मद शकील, भोपाल
‘‘इतिहास के अच्छे प्रदर्शन मायने नहीं रखते। ऐतिहासिक गौरव सिर्फ प्रेरणा दे सकता है। सच्चई तो यह है कि किसी खिलाड़ी के लिए एक दिन खास होता है, जिस दिन वह परफार्म करता है।’’
यह कहना है राजधानी भोपाल के एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय और विश्व के नंबर तीन स्नूकर खिलाड़ी कमल चावला का, जो 24 नवंबर से आईबीएसएफ विश्व स्नूकर चैंपियनशिप में उतरेंगे। इसके लिए उन्हें भारत से प्रथम वरीयता दी गई है। यह चैंपियनशिप बुल्गारिया के शहर सोफिया में खेली जाएगी। प्रदेश टुडे से खास बातचीत में कमल ने कहा कि मैं इस टूर्नामेंट में पिछली बार सेमीफाइनल तक पहुंचा था। पर इससे इस टूर्नामेंट में कोई असर नहीं पड़ेगा। खिलाड़ी के लिए हर दिन नया होता है और एक दिन खास होता है जिस दिन वह परफार्म करता है।
विश्व स्नूकर चैंपियनशिप की मेजबानी पहले मिस्र को करनी थी। पर सुरक्षा कारणों से मिस्र ने मेजबानी से इंकार कर दिया। कमल ने बताया कि मैं यह सोच कर परेशान था कि कहीं यह चैंपियनशिप रद्द न हो जाए। क्योंकि ऐन मौके पर कोई भी देश इतने बड़े आयोजन की जिम्मेदारी लेने से कतराएगा। चूंकि अब यह चैंपियनशिप बुल्गारिया में होना तय है तो अब मेरा पूरा ध्यान चैंपियनशिप पर केंद्रित है।
आगे कमल ने कहा कि मैं 15 अक्टूबर के आसपास ट्रेनिंग के लिए जाने की सोच रहा हूं।  उन्होंने बताया कि कल खेल संचालक डॉ. शैलेन्द्र श्रीवास्तव से उनकी बात हुई थी और उन्होंने अच्छी ट्रेनिंग दिलाने का आश्वासन दिया है। उल्लेखनीय है कि खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने पिछले वर्ष शेफील्ड में एक महीने की ट्रेंनिग पर भेजा था, जिससे उनके प्रदर्शन में सुधार भी हुआ था। मालूम हो कि चैंपियनशिप में कमल चावला के अलावा ब्रजेश दमानी भी हिस्सा लेंगे।
पहले यह चैंपियनशिप मिस्र में होने वाली थी, लेकिन इसे बदलकर अब बुल्गारिया में कर दिया गया है। कमल गत वर्ष भारत में खेली गई विश्व चैंपियनिशप में सेमीफाइनल तक का सफर तय किया था और तीसरा स्थान हासिल किया था। इस बार कमल विश्व चैंपियनशिप में भाग लेने से पहले एक महीने की ट्रेनिंग के लिए विदेश जाना चाहते हैं।